लखनऊ | नवरात्र कल
बुधवार से प्रारम्भ हो रहे हैं, तिथि अनुसार आश्विन शुक्ल प्रतिपदा आज 9 अक्टूबर
को दिन में 9.15 बजे लग चुकी है लेकिन उदया तिथि होने के कारण प्रतिपदा 10 अक्टूबर
को मानी जायेगी और कलश स्थापना प्रात: सूर्योदय 6.12 से 12 बजे तक कभी भी कर सकते
हैं इसके बाद राहु काल लग जाएगा | सर्वोत्तम अभिजीत मुहूर्त दिन में 11.36 से
11.59 तक ही होगा | इस नवरात्र में माता नाव में सवार होकर आ रही हैं, सभी का
कल्याण करेंगी |10 अक्टूबर को माँ शैलपुत्री का का
पूजन होगा |
शैलपुत्री ( पर्वत की बेटी )
वह पर्वत हिमालय की बेटी हैं और नौ दुर्गा में पहली रूप है । पिछले जन्म में वह राजा दक्ष की पुत्री थीं ।
इस जन्म में उसका नाम सती-भवानी था और भगवान शिव की पत्नी । एक बार दक्ष ने भगवान शिव को
आमंत्रित किए बिना एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया था, देवी सती वहां पहुँच गईं और तर्क करने लगीं ।
उनके पिता ने उनके पति (भगवान शिव) का अपमान जारी रखा था ,सती भगवान् का अपमान सहन नहीं करपातीं और अपने आप को यज्ञ की आग में भस्म कर देती हैं | दूसरे जन्म वह शैलराज हिमालय की बेटी पार्वती-हेमावती के रूप में जन्म लेती है व शैलपुत्री के रूप में विख्यात होती हैं और भगवान शिव से विवाह करती हैं
नौदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियां अनंत हैं |माता शैलपुत्री का बीज मन्त्र : ह्रीं शिवायै नम: है |ब्रह्मचारिणी (माँ दुर्गा का शांति पूर्ण रूप)दूसरी उपस्तिथि नौ दुर्गा में माँ ब्रह्मचारिणी की है। " ब्रह्मा " शब्द उनके लिए लिया जाता है जो कठोर भक्ति करते है और अपने
दिमाग और दिल को संतुलन में रख कर भगवान को खुश करते है । यहाँ ब्रह्मा का अर्थ है "तप" । माँ ब्रह्मचारिणी की मूर्ति बहुत
ही सुन्दर है। उनके दाहिने हाथ में गुलाब और बाएं हाथ में पवित्र पानी के बर्तन ( कमंडल ) है। वह पूर्ण उत्साह से भरी हुई है ।
उन्होंने तपस्या क्यों की उसपर एक कहानी है |पार्वती हिमवान की बेटी थी। एक दिन वह अपने दोस्तों के साथ खेल में व्यस्त थी, नारद मुनि उनके पास आये और भविष्यवाणी
की "तुम्हरी शादी एक नग्न भयानक भोलेनाथ से होगी और उन्होंने उसे सती की कहानी भी सुनाई। नारद मुनि ने उनसे यह भी
कहा उन्हें भोलेनाथ के लिए कठोर तपस्या भी करनी पड़ेगी । इसीलिए माँ पार्वती ने अपनी माँ मेनका से कहा कि वह शम्भू
(भोलेनाथ ) से ही शादी करेगी नहीं तो वह अविवाहित रहेगी। यह बोलकर वह जंगल में तपस्या निरीक्षण करने के लिए चली
गयी। इसीलिए उन्हें तपचारिणी ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। माता अडिगता का सन्देश देती हैं |माँ ब्रह्मचारिणी का बीजमन्त्र : ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:
साहस और शक्ति की देवी मां चंद्रघंटातीसरी शक्ति का नाम है चंद्रघंटा जिनके सर पर आधा चन्द्र (चाँद ) और बजती घंटी है। वह शेर पर बैठी संघर्ष के लिए तैयार
रहती है। उनके माथे में एक आधा परिपत्र चाँद ( चंद्र ) है। वह आकर्षक और चमकदार है । वह 3 आँखों और दस हाथों में दस
हथियार पकड़े रहती है और उनका रंग सुनहरा है।गले में सफ़ेद फूलों की माला है | माँ चंद्रघंटा का वाहन बाघ है | वह हिम्मत
की अभूतपूर्व छवि है। उनकी घंटी की भयानक ध्वनि सभी राक्षसों और प्रतिद्वंद्वियों को डरा देती है । इन्हें साहस और शक्ति की
देवी माना जाता है |मां चन्द्रघंटा का बीजमन्त्र : ऐं श्रीं शक्तयै नम:चौथे रूप में प्राण शक्ति देतीं मां कुष्मांडामाँ के चौथे रूप का नाम है कुष्मांडा। " कु" मतलब थोड़ा "शं " मतलब गरम "अंडा " मतलब अंडा। यहाँ अंडा का मतलब है
ब्रह्मांडीय अंडा । वह ब्रह्मांड की निर्माता के रूप में जानी जाती है जो उनके प्रकाश के फैलने से निर्माण होता है। वह सूर्यलोक
की निवासी हैं | वह सूर्य की तरह सभी दस दिशाओं में चमकती रहती है। उनके पास आठ हाथ है ,सात प्रकार के हथियारउनके हाथ में चमकते रहते है। उनके दाहिने हाथ में सर्वसिद्ध माला है और वह शेर की सवारी करती है।मां कूष्मांडा का बीजमन्त्र: ऐं ह्री देव्यै नम:माँ के आशीर्वाद का रूप है स्कंदमातादेवी दुर्गा का पांचवा रूप है " स्कंद माता ", हिमालय की पुत्री , उन्होंने भगवान शिव के साथ शादी कर ली थी । उनकाएक बेटा था जिसका नाम "स्कन्दा " था स्कन्दा देवताओं की सेना का प्रमुख था । स्कंदमाता आग की देवी है। स्कन्दा उनकी
गोद में बैठा रहता है। उनकी तीन आँख और चार हाथ है। वह सफ़ेद रंग की है। वह कमल पैर बैठी रहती है और उनके दोनों
हाथों में कमल रहता है।कमलासन वाली माता को पद्मासन भी कहा जाता है | देवी का यह रूप इच्छा, ज्ञान और क्रियाशक्ति
का समागम है |मां स्कंदमाता का बीजमन्त्र : ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:
ऋषि कता की पुत्री कात्यायनी माँमाँ दुर्गा का छठा रूप है कात्यायनी। एक बार एक महान संत जिनका नाम कता था ,जो अपने समय में बहुत प्रसिद्ध थे ,उन्होंने देवी माँ की कृपा प्राप्त करने के लिए लंबे समय तक तपस्या की ,उन्होंने एक देवी के रूप में एक बेटी की आशा व्यक्तकी थी। उनकी इच्छा के अनुसार माँ ने उनकी इच्छा को पूरा किया और माँ कात्यानी का जन्म कता के पास हुआ माँ दुर्गा के रूप में।
मां कात्यायनी का बीजमन्त्र : क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:शुभ फल देनेवाली मां कालरात्रि (माँ का भयंकर रूप)माँ दुर्गा का सातवाँ रूप है कालरात्रि। वह काली रात की तरह है, उनके बाल बिखरे होते है, वह चमकीले भूषण पहनती है।उनकी तीन उज्जवल ऑंखें है ,हजारो आग की लपटे निकलती है जब वह सांस लेती है। वह शावा (मृत शरीर ) पे सावरी करती है,उनके दाहिने हाथ में उस्तरा तेज तलवार है। उनका निचला हाथ आशीर्वाद के लिए है। । जलती हुई मशाल ( मशाल ) उसके बाएं
हाथ में है और उनके निचले बायां हाथ अभय की मुद्रा में है जिससे वे भक्तों को निडर बनाती है। उन्हें "शुभकुमारी" भी कहा जाता
है जिसका मतलब है जो हमेश अच्छा करती है। मां को भोग में गुड़ बेहद पसंद है, गुड़ का भोग लगाकर किसी ब्राह्मण को दे देनाचाहिए |मां कालरात्रि का बीजमंत्र : क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:
माँ पार्वती का रूप और पवित्रता का स्वरुप मां
महागौरीआठवीं दुर्गा " महा गौरी है।" वह एक शंख ,चंद्रमा और जैस्मीन के रूप सी सफेद है,उनके गहने और वस्त्र सफ़ेद और साफ़ होते है।उनकी तीन आँखें है ,उनकी सवारी बैल है ,उनके चार हाथ है। उनके निचले बाय हाथ की मुद्रा निडर है ,ऊपर के बाएं हाथ में" त्रिशूल " है ,ऊपर के दाहिने हाथ डफ है और निचला दाहिना हाथ आशीर्वाद शैली में है।वह शांत और शांतिपूर्ण है और शांतिपूर्णशैली में मौजूद है. यह कहा जाता है जब माँ गौरी का शरीर गन्दा हो गया था धूल के वजह से और पृथ्वी भी गन्दी हो गयी थी तब
भगवान शिव ने गंगा के जल से उसे साफ़ किया था। तब उनका शरीर बिजली की तरह उज्ज्वल बन गया.इसीलिए उन्हें महागौरी
कहा जाता है । यह भी कहा जाता है जो भी महा गौरी की पूजा करता है उसके वर्तमान ,अतीत और भविष्य के पाप धुल जाते है।मां महागौरी का बीजमंत्र : श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:
ज्ञान का स्वरूप मां सिद्धिदात्रीमाँ का नौवा रूप है " सिद्धिदात्री " ,आठ सिद्धिः है ,जो है अनिमा ,महिमा ,गरिमा ,लघिमा ,प्राप्ति ,प्राकाम्य ,लिषित्वा औरवशित्व। माँ शक्ति यह सभी सिद्धिः देती है। उनके पास कई अद्भुद शक्तिया है ,यह कहा जाता है "देवीपुराण" में भगवान शिव कोयह सब सिद्धिः मिली है महाशक्ति की पूजा करने से। उनकी कृतज्ञता के साथ शिव का आधा शरीर देवी का बन गया था और वह
" अर्धनारीश्वर " के नाम से प्रसिद्ध हो गए। माँ सिद्धिदात्री की सवारी शेर है ,उनके चार हाथ है और वह प्रसन्न लगती है। दुर्गा कायह रूप सबसे अच्छा धार्मिक संपत्ति प्राप्त करने के लिए सभी देवताओं , ऋषियों मुनीस , सिद्ध , योगियों , संतों और श्रद्धालुओंके द्वारा पूजा जाता है।मां सिद्धिदात्री का बीज मंत्र : ह्रीं क्लींऐं सिद्धये नम:नवदुर्गा- एक स्त्री के पूरे जीवनचक्र काबिम्ब है नवदुर्गा के नौ स्वरूप !
1. जन्म ग्रहण करती हुई कन्या *"शैलपुत्री"* स्वरूप है !
2. कौमार्य अवस्था तक *"ब्रह्मचारिणी"* का रूप है !
3. विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से वह *"चंद्रघंटा"* समान है !
4. नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर वह *"कूष्मांडा"* स्वरूप है !
5. संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री *"स्कन्दमाता"* हो जाती है !
6. संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री *"कात्यायनी"* रूप है !
7. अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से वह *"कालरात्रि"* जैसी है !
8. संसार (कुटुंब ही उसके लिए संसार है) का उपकार करने से *"महागौरी"* हो जाती है !
9 धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार मे अपनी संतान को सिद्धि (समस्त सुख-संपदा) काआशीर्वाद देने वाली *"सिद्धिदात्री"* हो जाती है !
दुर्गा सप्तशती के चमत्कारी मंत्र1 आपत्त्ति से निकलने के लिएशरणागत दीनार्त परित्राण परायणे ।सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमो स्तु ते ॥2 भय का नाश करने के लिएसर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिमन्विते ।भये भ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमो स्तु ते ॥3 जीवन के पापो को नाश करने के लिये ।हिनस्ति दैत्येजंसि स्वनेनापूर्य या जगत् ।सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्यो नः सुतानिव ॥4 बीमारी महामारी से बचाव के लिएरोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभिष्टान् । त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति ॥5 पुत्र रत्न प्राप्त करने के लिए देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥6 इच्छित फल प्राप्ति एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः7 महामारी के नाश के लिएजयन्ती मड्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमो स्तु ते ॥8 शक्ति और बल प्राप्ति के लियेसृष्टि स्तिथि विनाशानां शक्तिभूते सनातनि । गुणाश्रेय गुणमये नारायणि नमो स्तु ते ॥9 इच्छित पति प्राप्ति के लियेॐ कात्यायनि महामाये महायेगिन्यधीश्वरि । नन्दगोपसुते देवि पतिं मे कुरु ते नमः ॥10 इच्छित पत्नी प्राप्ति के लिये पत्नीं मनोरामां देहि मनोववृत्तानुसारिणीम् ।तारिणीं दुर्गसंसार-सागरस्य कुलोभ्दवाम् ॥॥!!!!