Wednesday, September 13, 2017

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भाजपा का नया इतिहास

भाजपा के नये भारत का इतिहास !

 नई दिल्ली (राव) | भारतीय जनता पार्टी ने एक सामान्य ज्ञान 2017 नाम से एक बुकलेट छपवाई है, जिसमें पहले प्रधानमंत्री के तौर पर पंडित जवाहरलाल नेहरू का कोई जिक्र नहीं है। किताब में प्रधानमंत्री पद से त्याग देने वाले पीएम के रूप में मोरारजी देसाई का नाम है। 70 पेजों की इस किताब के 34वें पेज पर शीर्षक है-भारत में पहले।
इसमें देश के पहले राष्ट्रपति, गवर्नर जनरल, उप राष्ट्रपति, लोकसभा स्पीकर और उपप्रधानमंत्री के बारे में बताया गया है। लेकिन इसमें न तो पंडित जवाहर लाल नेहरू का बतौर प्रथम प्रधानमंत्री जिक्र है और न ही महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता बताया गया है। इन बुकलेट्स को कई सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों के हजारों बच्चों को बांटा गया है।
महाराष्ट्र में कक्षा 9 की भूगोल की पुस्तक में देश का नक्शा गलत छाप कर बच्चों को बांट दिया गया यही गलती पिछले साल भी महाराष्ट्र शिक्षा बोर्ड ने की थी | इसी तरह उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग ने कक्षा एक में चलने वाली सरकारी पुस्तक ‘कलरव’ में अंग्रेजी की 31 वर्णमाला लिखीं हैं जबकि 26 होनी चाहिए | प्रकाशक यहीं नहीं रुके कक्षा 3 को पढ़ाया जाने वाला विषय कक्षा 1 की किताब में छाप कर बच्चों में वितित कर दिया गया है | यह है स्कूल चलो अभियान का सच और भाजपा की इतिहास बदलकर नई पीढ़ी को गुमराह करने की साजिश ! यही नहीं बाबा साहेब अम्बेडकर के नाम से स्कूलों व विश्वविद्यालयों में दलित विद्यार्थियों को ही प्रवेश नही मिल रहा है ?


प्रियंका हिंदी समाचार

नई आज़ादी के हल्ले में खबरपालिका  
सच लिखो तो सियासी मुहल्ले के जांबाज देशद्रोही कहकर हाथ काट ले रहे हैं | झूठ लिखो तो पाठक दारूबाज दलाल मान लेता है | चाटुकारिता करो तो किराये के पंडालों में भोजन के लिए बुलाकर सियासी गुंडे हलक में हाथ डालकर अपमानित कर रहे हैं |   इससे भी जी नहीं भरता तो गौरी लंकेश,ब्रजनन्दन,जैसों का राम नाम सत्य करते हुए केरल-बंगाल हिंसा के साथ इमरजेंसी का फुक्का फाड़ तर्पण कर रहे हैं | तिस पर तुर्रा ये कि सियासी आरामगाहों में ठेके या संविदा पर काम पाए संस्कारी लफ्फाज राष्ट्रवाद की परिभाषा बता रहे हैं | गो कि आदमी की पैरोकारी करने की जगह सत्ताधारियों के जयकारे लगाने की लतखोर ‘पत्तलकारिता’ जमात में शामिल होना होगा ? कौन देगा इस सवाल का जबाब गांधी या गोडसे के वारिस ? या फिर लोहिया या  मार्क्स का झंडा उठाये जमात ? या जिन्ना की बिगडैल औलादों के खलीफा ?
गौरी की हत्या पर चीखते-चिघाड़ते लेख/ज्ञान , समझदार सलाहें और आंसू बहाती संवेदनाएं उनकी चिता की राख में चमकती चिंगारियों से जुबानी शोले भडकाने का अपराध दर अपराध करके क्या साबित करना चाहती हैं ? हिन्दुओं के संस्कार तो मिट्टी को प्रणाम करने के हैं , फिर ये कौन से और किस ग्रह के हिन्दू हैं जो गौरी की अस्थियों तक को गाली दे रहे है ? यह किसी पत्रकार की पहली हत्या नहीं है और गाली के भजन भी पहली बार नहीं सुनाये जा रहे हैं , पिछली उत्तर प्रदेश सरकार के समय शाहजहांपुर के पत्रकार जोगेंद्र सिंह की जिन्दा जला कर हत्या के दौरान भी इसी तरह हल्ला-गुल्ला मचा था | आगे भी जब ऐसा कुछ घटेगा तो क्या इसी तरह छाती कूटते हुए मातम मनाएंगे ? चिंता तो संयुक्त राष्ट्र के विशेष रिपोर्टर डेविड केय भी जता चुके हैं और दुनिया भर की जेलों में बंद पत्रकारों के रिहा किये जाने की मांग भी कर चुके हैं | महज चिंता,निंदा,संवेदना या विलाप करने से कुछ नहीं होगा | हमे समझना होगा कि पत्रकारों के बरखिलाफ राजनीतिक षडयंत्र की जड़ें कहाँ और कितनी गहरी हैं |
राजनीति के कचरा घरों से लेकर राजनीति के मुहल्ला दर मुहल्ला बड़बोले नेताओं की जमात पत्रकारिता को मिशन बताते नहीं थकती और पत्रकारों के आदर्श गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम लेना नहीं भूलती , लेकिन यह नहीं बताती कि किस मिशन पर पत्रकारों को काम करना चाहिए ? क्या वे खुद जिस मिशन पर काम कर रहे होते हैं उस पर पत्रकारों को काम करना चाहिए या फिर खबरपालिका के जिम्मेदार वकील होकर आदमी की पैरोकारी के मिशन पर ? आदमी की पैरोकारी करते हुए गांधीजी ने अपनी छाती पर गोली लगने के बाद हाय ..मार डाला नहीं ‘ हे ...राम’ कहा था | यह वाक्य राष्ट्र के लिए था , मानव के लिए था और उसकी पैरोकारी के लिए था | मोहनदास करमचन्द गांधी स्वतन्त्रता आन्दोलन के नायक ही नहीं थे , पत्रकार भी थे और आजाद भारत में 30 जनवरी,1948 को पहले पत्रकार की हत्या हुई थी | इसी के बाद पत्रकारिता ‘मिशन’ से ‘मोशन’ हो गई और शुभ-लाभ के बहीखाते में दर्ज की जाने लगी | 31 अक्टूबर,1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पत्रकारिता ‘मोशन’ से ‘मंचन’ में तब्दील हो गई | मंच पर अभिनय होता है जिसमे झूठ के सारे नातेदारों की भागीदारी होती है और मंच के पीछे साजिशों की पटकथा लिखी जाती है | क्या यही ‘न्यू इंडिया’ और नई आजादी’ के मंच पर नहीं हो रहा है ?
 इसी सवाल की कोख से हिंसक कबीले पैदा होने लगते हैं और रक्तरंजित पथ का निर्माण होने लगता है | इन्हीं साजिशी कबीलों की असलियत से नई पीढी को वाकिफ कराना है और इसके लिए पत्रकारों को अपने पुरखों की कलम से जने अक्षरों से हौसला हासिल करना होगा | यही हौसला ‘मिशन’ बनाना होगा जो  आन्दोलन साबित हो |  सवाल बहुत हैं ,बहसें बहुत हैं लेकिन अक्षरों की अपनी सीमा है , शालीनता है और ललकार भी |
प्राण नाथ डांट ल्यो मुला हम न मनिबे
लखनऊ | सब्जी जल गई...चावल जल गया....हाय दइया | लड़का घंटा भर से नंगा घूम रहा है कोई फ़िक्र है | टिफिन लगा या फोन पर ही लगी रहोगी | ऐसी आवाजें गांव-कस्बे से लेकर शहरी घरों से सुनाई देना आम हो गया है | दरअसल गृहणियां हर समय मोबाइल फोन पर लगी रहती हैं इसलिए ऐसी आवाजों की बुलंदियां बढ़ रही हैं | दिन में कई बार डांट खाने के बाद भी फोन की लत है की नहीं छूटती |  ऐसा नहीं है कि अकेले महिलाएं ही सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं बल्कि बच्चे,बूढ़े,युवा सभी के हाथों में फोन है और फेसबुक,वाट्सअप,वीडियो,गाने,जोक्स के साथ बातों का सिलसिला गजब है | लोगों का अपने पार्टनर तक से जुड़ाव घट रहा है , तलाक तक की नौबत आ रही है | अब अधिकतर लोगों की चाय सोशल मीडिया के दोस्तों के साथ होती है और सवेरा मोबाइल के एलार्म से होता है | मोबाइल की लत ने दुर्घटनाओं के साथ अपराधों को भी जन्म दिया है | आगरा से खबर है की 4जी फोन के लिए पति ने पत्नी को पीट-पीट कर मार डाला | लखनऊ में पति ने पत्नी को फोन पर बात करने से रोका तो पत्नी ने पति पर चाकू से हमला कर दिया | ‘डिजिटल इंडिया’ के फायदों के साथ कई  खतरे व अपराध भी बढ़ रहे हैं | चिकित्सकों के अनुसार लोग ‘स्मार्टफोन सेपरेशन एन्ग्जाइटी’ के शिकार हो रहे हैं | आंकड़े बताते हैं कि 79 फीसदी लोगों के हाथों में मोबाइल फोन हैं |
अंडे पर डंडा !
नई दिल्ली  | मांस बाजार की तबाही के बाद सरकार की नजर एक लाख करोड़ के मुर्गी पालन उद्योग पर टेढ़ी होती दिखाई दे रही है | विधि आयोग ने पिंजरे ( बैटरी केज ) में बंद और खुली मुर्गियों के अण्डों के बीच अंतर की सिफारिश की है | आयोग ने प्राणियों ( अंडे देने वाली मुर्गी ) पर अत्याचार रोकने के लिए नये नियमों की रूपरेखा तैयार की है | इस नियम में जानवरों पर अत्याचार कम करने के लिए पिंजरे में बंद और खुले में रहने वाली मुर्गियों के अंडों और गोश्त ( ब्रायलर ) में अंतर करना जरूरी है | आयोग की सिफारिश है कि मुर्गियों को खुले में रख कर उनसे अंडे हासिल करने को बढ़ावा दिया जाना चाहिए इसके लिए राज्य राज्य पशुपालन विभाग मान्यता दे | आयोग का तर्क है कि इससे उपभोक्ताओं को स्वस्थ व अत्याचार रहित प्रणाली में तैयार उत्पाद मिल सकेगा | अंडे देने वाली मुर्गियों और गोश्त ( ब्रायलर ) के लिए भी मानक तय किये गये हैं | इस खबर से मुर्गी पालन से लेकर अंडे और मुर्ग का गोश्त बेचने वाले कारोबारियों में खलबली मच गई है क्योंकि नियमों का पालन नहीं करने वालों के खिलाफ पशु अत्याचार निरोधक क़ानून के तहत कार्रवाई करने की भी सिफारिश की गई है | इतना ही नहीं मुर्गीपालन केन्द्रों की नियमित निगरानी व जांच के साथ नियमों का पालन न करने पर मुर्गियां तक जब्त करने का भी प्रावधान किया गया है |
बताते चलें कि अवैध बूचडखानों के बाद केंद्र सरकार ने पशु बाजार नियंत्रित करने के लिए नये नियम बनाये थे जिसके तहत पशुओं/मुर्गियों की गर्दन पंजे,पंख बाँधने , उल्टा पकड़ने पर पाबंदी लगा दी थी | आयोग का कहना है कि छोटे पिंजरों में मुर्गियां पंख तक नहीं फैला सकतीं , उन्हें बहुत परेशानी होती है , इसके साथ ही मुर्गियों की संख्या उनके वजन के हिसाब से तय होनी चाहिए | वहीं कारोबारियों का कहना है ये सिफारिशें न केवल हास्यास्पद हैं बल्कि इससे उत्पादन घटने के साथ बीमारियों के बढ़ने का खतरा भी बढ़ेगा क्योंकि खुले में मुर्गियां बीट और खाद के संपर्क में रहेंगी | वहीं पोल्ट्री उद्योग से जुड़े दिग्गजों का कहना है कि यदि आयोग की सिफारिशें मानी गईं तो इसके लिए अरबों डॉलर के निवेश की जरूरत होगी |

गौरतलब है कि पिछले महीनों में अंडों और मुर्ग के गोश्त की कीमतों में 30-40 फीसदी का इजाफा हुआ है | जानकारों का कहना है कि इसी वजह से सरकार की नजरें इस और उठ रहीं हैं | वहीं उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि बढ़ी कीमतों के बाद भी उत्पादन लागत पर संकट मंडरा रहा है | सरकारी आंकड़े बताते हैं कि अकेले अंडों का उत्पादन 29.9 अरब है | यहाँ एक बात और गौर करने लायक है कि देश में मौजूदा सरकार और उसका मात संगठन शाकाहार का समर्थक है |