Tuesday, August 1, 2017

पं. हरिशंकर तिवारी के जन्मदिवस पर

भले लोगों के लिए है भोले ‘बाबा’ का हाता  
-राम प्रकाश वरमा

पांच अगस्त किसी मांगलिक पर्व की बेला भले ही न हो, लेकिन पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग पर हर-हर महादेव का जयघोष अवश्य गूंजता है। हरि स्मरण यानी भगवान शंकर की स्तुति और सावन की मस्ती। आदमी के मन में तीर्थ के पुण्यलाभ का अहसास। एक ओर महादेव के जलाभिषेक की श्रद्धा, दूसरी ओर मानव को जल का उपहार। दोनों ही मानव जीवन की अमूल्यता। सावन की बरखा जहां धरती को उपजाऊ बनाती है, वहीं युवाओं के मन में मस्ती की हिलोरें पैदा करती है। भाई के प्रति बहनों में अनुराग की ऊर्जा देती है। पुत्र अपने माता-पिता को कांधों पर उठाए भोले बाबा के दरवाजे ले जाते श्रवण कुमार के भाव भी इसी सावन में देखने को मिल जाते हैं। सावन में ब्याही बेटियां अपने मायके आकर वात्सल्त्य जीती हैं। गो कि सावन जीवन की खिलखिलाहट है। मानव मन के लिए तीर्थ है। इसी सावन के महीने में 78  साल पहले 5 अगस्त को ईश्वर ने गोरखपुर की धरती पर एक हस्ताक्षर किया , जिसे देश-दुनिया पं0 हरिशंकर तिवारी के नाम से जानती है।
   
नाम के अनुरूप ही भोले बाबा सा स्वभाव। दसियों भस्मासुरों को आशीष देने के बाद भी होठों पर निश्छल मुस्कान। कोई राग नहीं, द्वेष नहीं। यही भावना उनके वसुधैव कुटम्बकम यानी पूरे समाज को ही अपना परिवार मानने की इच्छा और क्षमता को उजागर करती हैं। मैं एक लम्बे समय से उनका सानिध्य पाने का गौरव पा रहा हूं। मेरे स्मृति के पुस्तकालय में कई संग्रह हैं। अभी हाल ही में हाते पर गया तो कहीं कोई बदलाव नहीं वही झोपड़ी और उसमें पड़ी बेंचें | उन पर बैठी मुलाकातियों भीड़ और उन सबका चाय व छाछ से स्वागत करते बहादुर | पंडितजी अभी अपने कमरे से बहर नहीं आये थे , मई अंदर की ओर बढ़ा तो गणेशजी ( पूर्व सभापति विधान परिषद ) से सामना हो गया , वही बैठ गया | घर से लेकर सियासत पर बातों के साथ चाय हुई , इसी बीच पंडितजी आ गये  | मुलाकातियों के बीच से लेकर  भोजन के बीच कब रात के दस बज गये पता ही नहीं लगा , अपने कमरे की ओर चलने को हुआ तो पानी काफी तेज बरस रहा था | पंडितजी ने स्वयं खड़े होकर ड्राइवर से मुझे कमरे तक छोड़ कर आने को कहा हालांकि महज एक फर्लांग भर जाना था | मेरे मना करने पर बोले, भीग जायंगे | ऐसी ही यादों में से एक का जिक्र हर बरस उनके जन्मदिन पर कर जाता हूँ। जन्मदिन पर मुबारक बाद देना या प्रणाम करना जीवन में नई ऊर्जा भरने के समान है। करोड़ों-अरबों लोग इसे महज औपचारिक या मौज-मस्ती के पर्व भर तक सीमित कर देने के हैप्पी बर्थ डेके इर्द-गिर्द केक पर सजी मोमबत्तियां फूंक कर ताली बजाते, खाते-पीते अघा जाते हैं। दरअसल वे भी बर्थडे ब्वायया बेबीको जीने के लिए नई ऊर्जा देने का ही काम करते हैं।
   
पंडित जी पांच अगस्त दो हजार सत्रह को 78 बरस पूरे करके 79 वीं चौखट में प्रवेश कर गए। उनका जन्मदिन मनाने जैसा कोई आयोजन कभी नहीं होता। इस दिन भी उनकी दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं होता। रोज की तरह उनका गाय, भैंसे, कुत्तों का दुलराना और कसरत के बाद अखबार देखने का नियम नहीं टूटता। न ही आमजन से मिलने और उनसे बतियाने का क्रम बिखरता। तिस पर विलक्षण तो यह कि उनके अगल-बगल बिखरी खास--आम की भीड़ का आधा फीसदी भी नहीं जानता कि आज उनका जन्मदिन है। वे कभी जताते भी नहीं। मजे की बात है कि सियासत के मोहल्ले के दसियों नामवर आज भी उनका आशीर्वाद लेकर अपने दिन की शुरुआत करने को आतुर आते हैं | वे इनसे भी निश्छल बातें करते हैं | मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं और यह अतिश्योक्ति भी नहीं है कि भोले बाबा का हाता भले लोगों के लिए हर समय खुला रहता है | यही वजह है कि हर बरस प्रियंकाके पन्नों पर उनके जन्मदिवस पर जहां उनकी कुछ बातें हो जाती हैं, वहीं कुछ भूले-बिसरे क्षण भी उजागर हो जाते हैं।
    1992
में प्रियंका वर्षगांठ समरोह में देर से आए पंडित जी देर तक रहे। उनके इंतजार में कई लोग बेताब थे, तो कई को समरोह खत्म होने की जल्दी। उनमें मंत्री जी व आइएएस भी थे। जब वे आए तो सबसे पहले उन्होंने अपने देर से आने के लिए क्षमा मांगी। अपने सम्बोधन में दोबारा खेद जताया। प्रियंकाको महज समाचार-पत्र नहीं वरन जागरूकता का प्रहरी बताते हुए उन्होंने उसमें छपी एक खबर की हेड लाइनपढ़कर सुनाते हुए कहा, ‘ यही विशेषता मुझे यहां तक खींच लाती हैं। सच तो यह है कि अखबार वे ही अच्छे और सच्चे लगते हैं जिनमें अपने आस-पास की अनुभूति हो।पंडित जी के जन्मदिन पर प्रियंकाका यह विशेष अंक उनके लिए नहीं उनके स्वजनों,प्रियजनों के लिए छपता है। वही उसे पूरे आनन्द से पढ़ते हैं। वहीं इस अंक के जरिए प्रणाम भी करते हैं। ईश्वर पंडित जी को दीर्घायु करें। सादर प्रणाम।  

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