Sunday, October 14, 2012

हमारे घर में तीसरा मोर्चा


सियासत के माॅल में साहित्य और पत्रकारिता के ‘कोलोबरेशन’ की जानी-पहचानी शख्सियत पहले ‘फुर्सत में’ आपसे मुखातिब होती थी। बीच के दिनों में निर्माणाधीन राजनैतिक काॅलोनी और साहित्यिक ‘फन’ के बीच बढ़े हुए यातायात में फंसे हुए अकुला रहे थे। मेरा आग्रह हुआ तो लोटन कबूतर की तरह उड़कर अपनी अटरिया पर गुटर... गूं...गुटर...गूं..., तो अब विधायकी, वोट और आदमी के बीच आपाधापी में फिर से आपसे रूबरू हैं, नींबू सी सनसनाती ताजगी के साथ उसी आखिरी पन्ने पर नये काॅलम ‘राजनैतिक व्याव्स्ता के बीच’ तीसरा मोरचा लेकर।                       -संपादक
हम सच ही कहते हैं। आप विष्वास करो या न करो। आपके पास विष्वास के अलावा और कोई उपाय नहीं। अविष्वास करोगे तो हमारी जगह कोई साम्प्रदायिक ताकत लपक लेगी। इसलिए यकीन करो कि मैं भी अर्थषास्त्र का जानकार हूं। अर्थषास्त्र का एम0ए0 हूं। मैं एम0ए0 की डिग्री यूनीवर्सिटी से नहीं लाया। तब डिग्री लेने के लिए 20 रूपये पड़ते थे। कोई भी समझदार अर्थषास्त्री 20 रूपये यों ही नहीं खर्च करेगा। मैंने भी नहीं किये। डिग्री से होता क्या है? मार्कसीट काफी है। मुझे अच्छे नम्बर मिले थे। नम्बर देने का काम विष्वविद्यालय के अपने ही प्रवक्ता करते हंै। राजनीति के क्षेत्र में भी नम्बर देने का काम अक्सर अपने दल वाले ही करते हैं। अर्थषास्त्री प्रधानमंत्री को भी सोनिया जैसे उनके संरक्षको ने 10 में 10 नम्बर दिये थे लेकिन विदेषी मीडिया ने नम्बर काट लिये। अब विदेषी अखबार विद्वान अर्थषास्त्री प्रधानमंत्री को भी ‘अंडर एचीवर - कम अंक पाने वाला’’ बता चुके हैं।
लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। प्रधानमंत्री विद्वान अर्थषास्त्री थे और हैं। मैं भी अर्थषास्त्र का एम0ए0 तो हूं ही। भरापूरा परिवार है मेरा। पुत्र, पुत्रियां, बहुएं और पौत्र। लेकिन घर गष्हस्थी चलाने में अर्थषास्त्र की समझ काम नहीं आती। पुत्र पढ़े लिखे हैं, पिता कड़क हैं सो घर का काम चला करता है। लेकिन पीछे हफ्ते बात बिगड़ गई। पुत्रों के साथ बैठा। उन्हें अर्थषास्त्र का ‘सकल घरेलू उत्पाद’ समझा रहा था। बताया कि खेती की उपज और तुम्हारे फुटकर व्यापार से धन समष्द्धि नहीं बढ़ेगी। घर के बाहर से आया परदेषी धन ही समष्द्धि लाता है। युवा पुत्र भिड़ गये। एक खेती में रूचि रखता है, एक काम चलाऊ व्यापार करता है, एक अखबार में है। मैं भी अकड़ गया। मैंने डांटा, ‘‘अर्थषास्त्र समझो। एफ0डी0आई0 जानो। जी0डी0पी0 समझो। अर्थषास्त्री प्रधानमंत्री के मुताबिक प्रति व्यक्ति समष्द्धि बढ़ी है, यह भी जानो। तभी घरेलू अर्थषास्त्र समझ में आएगा।’’
    बच्चे नहीं माने। एक ने कहा कि आपके अर्थषास्त्र से ही घर की लोटिया डूबी है। मेरे स्वाभिमान को चोट लगी। मैं कौटिल्य के अर्थषास्त्र का ज्ञाता हूं, एडम स्मिथ, मार्षल कीन्ज से लेकर मनमोहन अर्थषास्त्र तक मेरा ज्ञान फैला हुआ है। लेकिन घर वाले हैं कि मेरे ज्ञान अर्थषास्त्र को ही चुनौती दे रहे हैं।’’ मैंने ऊपर-ऊपर ऐंठते हुए लेकिन भीतर से मिमियाते हुए प्रतिवाद किया। अपना अर्थषास्त्र दोबारा समझाया ‘‘तुम्हारी खेती में इस दफा लहसुन जमकर पैदा हुआ। 7 रूपया किलो ही बिक रहा है, इसमें विदेषी कम्पनियों का ज्ञान लगता वे इसे खूबसूरत कागज की पन्नी में पैक करते। अंग्रेजी में नाम रखते ‘‘प्यारोफाइड गैरलाक्सि’’। हारलिक्स की तरह खूब बिकता। अपने हिमांचल प्रदेष का सेब मधुर है, ग्लूकोज से भरापूरा। लेकिन विदेषी सेब पर पर्ची चिपकी है, विदेषी होने की।
    खन्ना बाबू गोयल मैडम को परसों बता रहे थे कि फाॅरेन के सेब की बात ही दूसरी है। कांस्टीपेषन में भी फायदेमंद है। इसलिए मेरे बच्चों एफ0डी0आई0 पर ध्यान दो। विदेषी ज्ञान की हनक दूसरी है। करीना कपूर और कैटरीना कैफ का फर्क देखो। करीना देषी है, कैटरीना विदेषी। विदेषी अर्थषास्त्र ही मनमोहन है। देषी अर्थषास्त्र और स्वदेषी को कौन पूंछता है?’’ बच्चे झगड़े पर आमादा हो गये। मैंने कहा कि मैं अपनी बात पर अडिग हूं। यह कड़े निर्णय का समय है। मैं पीछे नहीं हटूंगा। तुमको साथ छोड़ना हो तो छोड़ो।’’ बच्चों ने भी फैसला सुना दिया ‘मैं आपको कमजोर नहीं होने दूंगा। आपका समर्थन करूंगा। आपको हमारा ख्याल रखना होगा। सिर्फ आपकी नीतियों का विरोध करता रहूंगा और तीसरा मोर्चा बनाने की कोषिष करूंगा।’’
    मैं फुर्सत में नहीं हूं। इसलिए फुर्सतनामा लिखने का समय नहीं। यह कड़े फैसले लेने का वक्त है। राजनैतिक अस्त व्यस्तता है। मैं भयभीत हूं। हमारे घर में भी तीसरा मोर्चा बनने जा रहा है।


आगामी हिंदी-साहित्य-सम्मेलन


इस बार हिंदी-साहित्य-सम्मेलन का वार्षिक अधिवेशन मुजफ्फरपुर में होगा। स्वागत-समिति बन चुकी है, और वह अपना कार्य करने लगी है। अब सम्मेलन के समय और सभापति के चुनाव का प्रश्न उपस्थित है। समय के संबंध में तो यह एक प्रकार से निश्चित ही है कि वह ईस्टर की छुट्टियों में होगा। सभापति के संबंध में हमारा मत यह है -
1. बाबू जगन्नाथ ‘रत्नाकर’ बी0ए0
2. ‘आज’-संपादक श्रीयुत बाबूराव-विष्णु पराड़कर
3. पं0 पद्मसिंह शर्मा
4. बाबू मैथिलीशरण गुप्ता
5. श्रीयुत जयशंकर ‘‘प्रसाद’’
    इन पांचों सज्जनों की विदृत्ता और हिंदी की सेवा हिंदी-संसार में किसी से छिपी नहीं। बाबू जगन्नाथ-दासजी बहुत अच्छे कवि हैं, और आपने आजन्म हिंदी-सेवा की हैं। आप वयोवृद्ध भी हैं और ज्ञानवृद्ध भी। ब्रजभाषा के तो आप इस समय एक मात्र सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। आपकी संपादित अनेक काव्य-पुस्तकें काशी के भारत-जीवन-प्रेस से किसी समय प्रकाशित हुई थीं। इधर आपने बिहारी-सतसई की वृहत और सुंदर टीका लिखी है, जो बिहारी-रत्नाकर के नाम से गंगा-पुस्तकमाला ने प्रकाशित की है। आपने इसके लिखने में बड़ी खोज, परिश्रम और अध्ययन किया है। इसकी भूमिका जो आपने लिखी है और जो शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली है, वह एक 2-3 सौ पृष्ठ का स्वतंत्र ग्रंथ ही होगा। उससे आपकी साहित्यज्ञता का प्रकृष्ट परिचय प्राप्त होगा। यही नहीं, आप प्राकृत के भी अच्छे ज्ञाता हैं, और अंगरेजी के भी ग्रेजुएट। आपने गंगावतरण नाम का एक मनोहर काव्य लिखकर इंडियन-प्रेस से प्रकाशित कराया हैं। उसकी काव्य-छटा भी दर्शनीय है। आपने उद्धव-शतक, भीष्माष्टक, गणेशाष्टक, द्रौपदी-अष्टक आदि अनेक छोटी-मोटी रचनाएं भी की हैं, जो शीघ्र ही प्रकाशित होंगी। ऐसे श्रेष्ठ विद्धान को यह सम्मान देना हिंदी-संसार का आवश्यक कर्तव्य है। श्रीयुत पराड़करजी की अध्ययनशीलता और योग्यता वास्तव में प्रशंसनीय है। आप संपादक भी प्रथम श्रेणी के हैं। आज पत्र को जो गौरव प्राप्त है, वह आप ही के मार्मिक लेखों और विवेचना-पूर्ण टिप्पणियों के कारण। आपने भिन्न-भाषा-भाषी होकर भी हिंदी को अपनाया है, यह आपकी विशेषता है। पं0 पद्मसिंहजी के विषय में अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं। आप संस्कृत, प्राकृत और फारसी के साहित्य के विशेष मर्मज्ञ हैं, सत्समालोचक हैं, सहृदय हैं, सफल संपादक हैं। ज्वालापुर से निकलने वालों भारतोदय पत्र को जिन्होंने पढ़ा है, वे इस बात को अच्छी तरह जानते होंगे। इस पत्र का संपादन आप ही करते थे। सतसई-संहार और सतसई-संजीवन आपकी सर्वतोमुखी प्रतिभा के प्रकृष्ट प्रमाण हैं। गुप्तजी हिंदी के लिये गौरव हैं। आपकी रचानाएं बहुत संुदर हैं। आपके जोरदार गं्रथों से हिंदी-संसार अच्छी तरह परिचित हैं। बाबू जयशंकर प्रसाद की प्रतिभा अब अच्छी तरह विकास को प्राप्त हो चुकी है। आप जैसे नाटक लिखने में सिद्धहस्त हंै, वैसे कविता करने में, वैसे ही काहनी तथा उपन्यास लिखने में। आपकी आँसू, अजातशत्रु, कामना, नागयज्ञ, स्कंदगुप्ता, अशोक, कंकाल, चंद्रगुप्त आदि पुस्तकें हिंदी-साहित्य का गौरव हैं। आपकी कविताएं इतनी भावपूर्ण और सुंदर होती हैं कि सहदय पाठक मुग्ध हो जाते हैं। हमारी राय में इन्हीं पांच सज्जनों में से किसी एक को इस बार सभापति बनाना उचित होगा। आशा है, हिंदी-संसार हमारी इस प्रार्थना पर ध्यान देने की अवश्य कृपा करेगा। अवस्था की दृष्टि से रत्नाकरजी को ही सभापति बनाने के लिये हम अधिक जोर देते हैं।

काशी में भरत मिलाप

वाराणसी। भरत मिलाप नवरात्रि बाद एकादशी को काशी या बनारस में मनाया जानेवाला एक महत्वपूर्ण पर्व है। भगवान श्रीराम के 14 वर्षाें के बनवास व लंकापति रावणबध के पश्चात अयोध्या लौटने पर भाई भरत, शत्रुघ्न व अयोध्याजनों के पुर्नमिलन की स्मृति में मनाया जाने वाला यह त्यौहार सारी दुनिया में चर्चित है। ऋग्वेद के समय से गंगा तट पर बसे काशी नगर में बाबा विश्वनाथ का वास है। इस पुण्यनगरी में करोड़ों श्रद्धालु तीर्थाटन व पर्यटन के लिए आते हैं। ‘वरणा’ और नासी के बीच बसा वाराणसी नगर दो शब्दों के योग से बना है। सभी इन्द्रियों के दोषों का जो निवारण या वरण करे उसे कहते हैं, वरणा और जो सारी इन्द्रियगत दोषों को नाश करे वह नासी। सो इसी वाराणसी में सभी संकटों से मुक्त करनेवाले महादेव रांड़ (विधवा), सांड़ और सन्यासियों से घिरे अपने भक्तों का कल्याण करते हैं। कहते हैं इसी पुण्य नगरी में महाकवि गोस्वामी तुलसीदास रामलीलाओं का आयोजन अलग-अलग मोहल्लों में किया करते थे तभी कई मोहल्लों के नाम रामायणकालीन हैं।
    वाराणसी हमेशा से अपने रंगीन मेलों, त्योहारों और घटनाओं के लिए प्रसिद्ध है। लगभग हर महीने कुछ त्योहार या मेले इस प्राचीन शहर में मनाये जाते है। वाराणसी के लोगों के सांस्कृतिक जीवन में गंगा नदी और इसके महत्व के साथ आत्मिक जुड़ाव है। वाराणसी में भरत मिलाप एक ऐतिहासिक त्योहार है जो हर साल बहुत आनंद के साथ मनाया जाता है।
    वाराणसी में भरत मिलाप हर साल अंग्रेजी महीने के अक्टूबर या नवंबर व भारतीय महीने के कुआर या कार्तिक में मनाया जाता है। काशीवासी इसे बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं। यह त्योहार नाटी इमली, वाराणसी में आयोजित किया जाता है। वाराणसी के इस महत्वपूर्ण त्योहार में असत्य और बुराई पर अच्छाई की जीत का सार है। वाराणसी में भरत मिलाप वाराणसी वासियों को ही नहीं, वरन् यह पूरे भारत से भरपूर मात्रा में भक्तों को आकर्षित करता है। लोगों की बड़ी संख्या इस त्योहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। रत्नाभूष्णों जडि़त वस्त्रों में प्रभु के रूपों के इस मिलन में काशी नरेश द्वारा भी भाग लिया जाता है। त्योहार की भावना से उठ। यह त्योहार वाराणसी और लोगों के लोगों के लिए एक बड़ा आकर्षण है। पूरे साल बेसब्री से इंतजार के बाद महान आनंद और भक्ति के साथ श्रृद्धालु इस त्योहार को मनाते हैं। लोगों को सड़क पर इकट्ठा करने के लिए शानदार जुलूस शहर में बड़े पैमाने पर रोशनी के साथ सजाया जाता है। लोग प्रभु श्रीराम की मूर्ति और उनके भाई भरत पर फूल माला और तिलक लगाकर पूजा करते हैं। इस साल यह त्योहार 25 अक्टूबर को धूमधाम से मनाया जाना है।

तिलक को कौन देगा इंसाफ?

ओबरा (सोनभद्र)। हज़ारों हज़ार छात्र छात्राओें का आदर्श, विद्वता और शैक्षिक आदर्श का स्तम्भ बन चुके वरिष्ठ शिक्षक सीजे तिलक को उनके ही स्कूल सेकेे्रड हर्ट सेकेण्ड्री कानवेण्ट की प्रधानाचार्या सिस्टर किरन नें अपनी निरंकुश तानाशाही का इस क़दर शिकार बनाया कि आज वह इन्साफ पाने के लिए दर-दर की ठोकरें खानें को मजबूर हैं। सीबीएसई के नियम कानून की धज्जियां उड़ाने पर उतारू प्रधानाचार्या नें शिक्षक धर्म को शर्मसार करने वाली ओछी हरकत को अन्जाम देते हुए बच्चों को जीवन भर अनुशासन और ज्ञान का पाठ पढ़ाने वाले संस्था के प्रति निष्ठावान शिक्षक को उसी स्कूल मे बच्चों व साथी कर्मियों के सामने अपमानित करते हुए स्कूल परिसर से बाहर निकलवाने का क्षुद्र कार्य भी अंजाम दे दिया।       
    उक्त शिक्षक का सुदोष मात्र इतना था कि विद्यालय प्रबन्धन द्वारा समय से पूर्व उसे सेवानिवष्त्त किये जाने की कुचेष्टा का उसने विरोध करते हुए अपने हक की मांग कर दी कि उसे राज्य सरकार और सीबीएसई के नियमानुसार 60 वर्ष की अवस्था में सेवानिवष्त्त किया जाये न कि 58 वर्ष में। लिहाजा हक और अधिकार की बात सुनते ही त्योरियां चढ़ाने वाली क्रिश्चियन संस्था दी एजुकेशनल सोसाइटी आफ दी अरसू लाइन मेरी इम्माकूलेट विमल सदन लखनऊ द्वारा संचालित उक्त विद्यालय की प्रधानाचार्या नें इस मामले को निजी प्रतिष्ठा का विषय बनाते हुए शिक्षक के जीवनभर के योगदान को मटियामेंट करने पर ही नहीं तुली अपितु अपने अहंकार और स्वतंत्र अल्प संख्यक संस्था के दम्भ में चूर होकर स्थानीय नियंत्रक जिलाविद्यालय निरीक्षक, रूल एवं रेगुलेशन से लेकर जिले एवं प्रशासन के सर्वोच्च नियंता जि़ला मजिस्ट्रेट के आदेश की अवमानना करने पर अड़ गयीं।
    यहां तक कि विद्यालय को मान्यता प्रदान करने से लेकर परीक्षा नियंत्रक सीबीएसई के आदेश को भी उक्त तानाशाह और निरंकुश हो चली प्रधानाचार्या ठेंगा दिखाती आ रही हंै। हैरान परेशान और हताश शिक्षक को अब बिल्कुल समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर अब वह इन्साफ मांगने कहां जायें। भीगी बिल्ली बनकर रहने वाले उक्त विद्यालय के शिक्षक और शिक्षिकाओं से लेकर विद्यालय परिवार भयवश दुबककर अपने साथी कर्मी के साथ हो रहे अन्याय को चुपचाप देखने को मात्र इसलिए विवश है कि कहीं उन्हें भी कल को बाहर का रास्ता न दिखा दिया जाये।
    अन्याय और शोषण के विरूद्ध अपने हक की आवाज उठाने वाले उक्त शिक्षक द्वारा इन्साफ के लिए अधिकारियों के यहां 2 फरवरी 12 से ही प्रत्यावेदन के साथ किये गये गुहार पर गौर करें तो न्याय पाने के लिए उक्त शिक्षक ने जिलाधिकारी के यहां दिये गये आवेदन पत्र में उल्लेख किया है कि उसकी सेवानिवष्त्ति की आयु 31 जनवरी 2014 को पूरा होता है जबकि उन्हे 60 वर्ष की बजाय 58 वर्ष की अवस्था में ही 01 फरवरी 2012 को पठन-पाठन कराने के बाद जबरिया सेवानिवष्त्त कर दिया गया और कहा गया कि अब आपको सेवामुक्त किया जाता है। विदित है कि राज्य सरकार द्वारा जारी राजाज्ञा में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि सेवानिवष्त्ति की आयु 60 वर्ष निद्र्दारित की गई है। साथ ही वह सेवानिवष्त्ति के बाद दो साल और सेवा का एक्सटेंशन पाने का अद्दिकारी है। यदि सेवक एक्सटेंशन नहीं लेता है तो वह साढ़े सोलह माह का वेतन सेवा लाभ के रूप में पाने का अधिकारी है।
    केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के तहत कार्यरत कर्मचारी भी उक्त सेवा नियमावली के दायरे में आते हैं। पीडि़त शिक्षक ने अधिकारियों के यहां सेवानिवष्त्ति पर पक्ष रखते हुए दावा किया है कि उनकी सेवानिवष्त्ति की आयु 31 जनवरी 2014 को पूरी होती है। बावजूद इसके उनकी आयु 58 वर्ष पूरे होते ही उन्हे 01 फरवरी 2012 को ही सेवामुक्त कर दिया गया। उन्हे न तो सेशन का लाभ ही दिया गया हैै और न ही 60 वर्ष की सेवा आयु और 2 वर्ष का एक्सटेंशन लाभ ही। विदित है कि पीडि़त शिक्षक की जन्म तिथि 1 फरवरी 1954 है जो विद्यालय अभिलेख में भी दर्ज है और विद्यालय द्वारा जारी वार्षिक बुलेटिन पत्रिका में भी उसका उल्लेख किया गया है।
    यहां ध्यान देने योग्य व विद्यालय प्रबन्धन के द्वारा शासन को गुमराह करने वाला एक तथ्य और है कि श्री तिलक को नियुक्ति का जो पत्र दिया गया है, इस पर 11 अप्रैल 1988 की तारीख अंकित है जबकि शासकीय अभिलेखों में वर्ष 2004 से उनकी नियुक्ति दर्शायी गई है। क्या यह संज्ञेय अपराध नहीं है?
    बावजूद इसके केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा जारी सेवा नियमावली का अनुपालन प्रबन्धन द्वारा न कर मनमानी की जा रही है। हालत यह है कि कल तक उस कालेज का स्तम्भ कहे जाने वाले उक्त शिक्षक को कालेज जाने पर हर दिन रूसवाई का सामना करना पड़ रहा है और कालेज परिसर में जाने पर प्रतिबन्द्दित कर दिया गया है।

सुन लो सुनाता हूँ एक कहानी...

एक थी लोकतांत्रिक राज की राजधानी। वहां था एक राजा। राजा हो गया था बूढ़ा, सो युवराज का राजतिलक कर दिया गया। युवा राजा पाकर प्रजा हो गई खुश। इधर प्रजा प्रसन्नता के सपने में थी, उधर युवा राजा और बूढ़ा पिता अपने राज को और बढ़ाने के लिए शराब कारोबारी के साथ चाय, पैसा बेचने वाले के साथ नाश्ता और वोट के ठेकेदारों के साथ भोजन करने में मस्त थे। घोषणा करने, आश्वासन देने व धन-भत्ता की खैरात बांटने में व्यस्त थे। देश की दूसरी राजधानियों के राजाओं से मेल-मुलाकात करके देश पर राज करने के मंसूबे बनाने में बूढ़े राजा और उनके चट्टे-बट्टे जी जान से लगे थे। इधर सूबे की राजद्दानी में युवा राजा अंकल, आंटी, मम्मी, बुआ और बहू के चोंचलों से घिरे। उधर राजधानी में आइएएस तक शोहदई पर अमादा। साथ के सूबेदार बलात्कार से लगाकर जमीनों का कब्जे के फेर में। कानून का राज.. कानून का राज.. का हल्ला मचाने के साथ ‘बोले यूपी’ का सिनेमाई ‘दयावान’ वाला अंदाज भी घर-घर दरवाजा खटखटाने लगा।
    अब सुनिए आगे का हाल-हवाल। पहले पिटे, होने वाले शिक्षक फिर प्रधान जी लोग। अब शायद पिटने की बारी है साठ हजार शिक्षकों की जो हड़ताल के चक्कर में हैं। खुली सड़क पर लड़के-लड़कियां शोहदई पर बजिद, तो सांड़ व कुत्ते बाकायदा बलात्कार के दुष्कर्म में लिप्त। शहर की हर सड़क पर प्रातःदर्शन में प्यारे-प्यारे कुत्तों को शौच करते, नालियों-नालों किनारे आदमी को हाजत से फारिग होते देखना हरिदर्शन है? मेयर साहब कहते हैं, साड़ों को पकड़कर मध्य प्रदेश भेज देंगे। तो जनाब आदमियों, कुत्तों और बन्दरों के लिए क्या इंतजाम होंगे ? शरीफ शहरी नागरिक जो गृहकर, जलकर समय से नकद जमा करते हैं उनका पानी बाकायदा चोरी करके बेचने वालों के लिए क्या करेंगे? और जो पार्षद इस कारोबार में साझीदार हैं उनसे कैसे निबटेंगे? यानी पीने का पानी शुद्ध रूप से नागरिकों को उपलब्ध नहीं ही है। इसके बाद भी जलकर तीन गुना बढ़ाने की कवायद जारी है? सफाई का हाल बेहाल है? इससे भी बुरी हालत बिजली की है। राजधानी के साठ फीसदी इलाके अंधेरे में हैं, इनका काम वैकल्पिक व्यवस्था से चलता है। लोग बाग सड़कों पर उतरकर रेल-बस रोककर विरोध प्रकट करते हुए पुलिस से पिट रहे हैं, फिर भी पूरी निर्लज्जता से बिजली की दरें बढ़ाई जा रही हैं। सड़क किनारे बेहाल मरीजों को ग्लूकोज चढ़ाया जा रहा है। एम्बुलेन्स व अस्पताल गेट/हाते में प्रसव कराये जा रहे हैं। दवा के नाम पर, प्राइवेट प्रैक्टिस के नाम पर लूट जारी है। यही हाल शिक्षा का है, वहां भी खुले हाथों लूट का आतंक है। फिर भी नारा है मुफ्त चिकित्सा/शिक्षा का? रसोई गैस, पेट्रोल, डीजल महंगा। टी.वी. देखने वालों के लिए सेट टाॅप बाॅक्स या डीटीएच लगवाना अनिवार्य। या सारा केन्द्र सरकार ने थोपा है, लेकिन सूबे की सरकार अपना कर छोड़कर नागरिकों को राहत क्यों नहीं पहुंचा सकती? साफगो बात यह कि आप अपने हिस्से का पूरा कर वसूलेंगे और केंन्द्र सरकार पर आरोप मढ़ देंगे?
    महारानी साहिबा (पूर्व) और उनके दरबारियों की कारें पिछले बरस दो अरब से अधिक का पेट्रोल पी गईं। इस साल राजा साहब और उनके मंत्रिगण की कारें लगभग तीन अरब का पेट्रोल पिएंगी। यह खर्च नौकरशाहों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली कारों से अलग है। गरीब आदमी की थाली 16 रूपए की तो राजा साहब की सुबह की चाय ही 160 रुपए की? और थाली बेशकीमती? राजा साहब छुट्टी मनाने सपरिवार जाते हैं, विदेश और आदमी टी.वी. के सामने अपनी बीवी से रिमोट छीनते और रूठने पर उसे मनाने के जेहाद में जूझकर अपनी छुट्टियां मनाता है? ऐसे सैकड़ों किस्से बयान किये जा सकते हैं। मगर 2014 में होने वाले चुनावों की समाजवादी तैयारी के बगैर राजा-प्रजा की यह कहानी अधूरी रह जाएगी। भारत बंद में 13 हजार करोड़ के नुकासान में शामिल होकर राजा साहब और उनके पिता ने किसका भला किया? बिचैलियों का, व्यापारियों का या आम नागरिकों का? या फिर अपनी संभावित गोलबंदी का? इस गोलबंदी की मार बंगाल से चेन्नई तक जारी है। अंदरखाने नागपुरवालों से भी खुसर-पुसर की तरंगे सियासी हवा में तैर रही हैं। सूबे में खैरात (कई योजनाओं के जरिए) बांटने के साथ छः महीने की उपलब्धियों के प्रचार में राजकोष के धन को खुले हाथों लुटाकर कार्यकर्ताओं तक को ठगा जा रहा है? संसाद/विधायक/पार्षद/प्रद्दान तक बीस-बीस लाख की गाडि़यों के काफिले में सड़कें रौद रहे हैं? मरीज ढोने वाली एम्बुलेन्स वोटरों के थोक व्यापारियों के दरवाजे खड़ीं हैं? इससे भी दो कदम आगे अल्पसंख्यक वोटर कहाने वाले खुले हाथों दंगा करते हैं, भगवान की मूर्ति तोड़ देते हैं और पुलिस सिर्फ तमाशाई रहती है। बाद में बयानों के जरिये नागरिकों को गुमराह किया जाता है? यह किस किस्म की चुनावी तैयारी है?
    मैं यहां एक सवाल पूंछना चाहता हूँ। हालांकि यह सवाल कई बार पूंछ चुका हूं कि यह सूबा उत्तर प्रदेश किसका है? भाजपाइयों का, सपाइयों का, कांग्रेसियों का, बसपाइयों का या फिर अल्पसंख्यक मोर्चाे का है? ठाकुरों, बाभनों, बनियों, लालाओं, यादवों, कुर्मियों या हरिजनों का है? या अपराधियों शोहदों का है? या लुटी-पिटी रोती औरतों का है? या फिर वोटर कार्डधारक वोटरों का हैं? आखिर यह सूबा किसका हैं? कौन जवाब देगा? तो किस्सा कोताह ये कि मेरी किस्सागोई शायद आपको थका रही होगी, लेकिन युवा राजा की इस कहानी पर सोंचिए फिर फैसला आपके हक में हो सकता है।

सियासत के मोहल्ले में आया लालू का बेटा

पटना। राजनीति की चिकनी सड़क पर लालू यादव के बड़े सुपुत्र तेज प्रताप ने भी नितीश कुमार सरकार के खिलाफ मोर्चा निकालकर अपने छोटे भाई तेजस्वी के साथ कदम बढ़ा दिये। मजे की बात है कि उसी बी.एन. कालेज व पटना विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ तेज प्रताप छात्रों के लिए सुविधाओं की मांग कर रहे थे, जहां से 40 साल पहले लालू यादव ने छात्र नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई थी। राष्ट्रीय जनता दल की यूथ विंग की कमान भी तेज प्रताप संभालेंगे। वे छात्रों के बीच काम करने को लेकर बेहद उत्साहित हैं। उन्होंने कुछ ही समय पहले औरंगाबाद, बिहार में मोटरसाइकिल का शोरूम भी खोला है। राजनीति और व्यापार में दोनों पैर जमाकर राजद के युवराज उप्र की तर्ज पर बिहार के सिंहासन पर कब्जा करने की जंग लड़ने सड़कों पर उतर गये हैं।

‘मैनफोर्स’ का आतंक या शोहदाई का आक्रमण

लखनऊ। औरैया की युवती को बंधक बनाकर सपा विधायक मदन सिंह गौतम व उनके चार साथियों ने चार महीने तक लगातार बलात्कार किया। ऐसा आरोप पुलिस अद्दीक्षक को दी गई तहररी में पीडि़त युवती ने लगाया है। इस घटना से पहले लखनऊ-दिल्ली के बीच चलने वाली वीआईपी गाड़ी लखनऊ मेंल में यात्रा के दौरान सूबे के आइएएस शशिभूषण लाल ‘सुशील’ ने सहयात्री युवती से छेड़छाड़, मारपीट की व बलात्कार करने का प्रयास किया। इसी दिन कैसरबाग क्षेत्र में दबंगों  ने मां के साथ जा रही युवती को न सिर्फ छेड़ा वरन् उसके कपड़े तक फाड़ने के प्रयास किया। हर पांच मिनट में पांच लड़कियों को राजधानी में छेड़ने के मामले सामने आते हैं। पूरे सूबे के हालात का अंदाजा लगाना तब और आसान हो जाता है जब कानपुर में भरे बाजार दो लड़कियों से अश्लील हरकत करते रहे शोहदे और पुलिस घटना से ही इन्कार करती रही। इससे भी दो कदम आगे अलीगढ़ की खैर कोतवाली में तैनात रहे सिपाही ने छात्रा से दुष्कर्म कर उसकी वीडियों क्लिप बना ली। इन शर्मनाक घटनाओं की बाढ़ में भगवान श्रीकृष्ण की बाललीलाओं की पवित्र धरती नंदगांव (मथुरा) के एक विद्यालय की शिक्षिका से वहीं के सह-समन्यक ने बलात्कार कर डाला। इस कुकर्म में विद्यालय की प्रद्दानाचार्या भी शामिल थीं। इलाहाबाद के मांडा इलाके में 17 साला छात्रा के साथ उसके ही चचेरे भाई ने अपने डाक्टर मित्र व एक अन्य दोस्त के साथ डाक्टर मित्र के क्लीनिक में बंधक बनाकर तीन दिन तक बलात्कार किया। वहीं फर्रूखाबाद के जिंजौरा व पहाड़पुर गांव में युवती से छेड़छाड़ को लेकर आमने-सामने गोलियों की बौछार होने की खबर आई हैं।
    इससे भी अधिक खतरनाक घटना अलीगढ़ के अतरौली विद्दान सभा क्षेत्र के गांव विद्दीपुर की है। गांव की युवती के साथ वहीं के युवक ने दुराचार किया। पंचायत बैठी युवक ने अपना अपराध कबूल किया। पंचों ने फैसला सुनाया भरी पंचायत में आरोपी को दस जूते युवती मारे और 80 हजार जुर्माना पीडि़त परिवार को मिले। घटनाएं तो इतनी हैं कि अखबार में पन्ने कम पड़ जाएंगे। ये घटनाएं महज बानगी भर नहीं हैं, वरन् समाज की बदलती सांेच का घृणित चेहरा हैं, कानून के खौफ को बिला जाने की है।
    तकलीफ तो तब और होती है जब मुख्यमंत्री से लेकर डीजीपी तक बयान देते हैं, चाहे कोई भी हो बहू-बेटी से छेड़छाड़ महंगी पड़ेगी या लड़कियों को नहीं जाना होगा थाने, पुलिस लिखाएगी मुकदमा।’ ये झूठे आश्वसनों वाले बयान लगातार बढ़ती शोहदई और बलात्कार के सामने प्रदेश की महिलाओं/ युवतियों का मजाक उड़ाने वाले लगते हैं। पुलिस क्या करती है या क्या कर रही है? इसे कौन नहीं जानता। इससे भी दो कदम आगे बढ़कर उपदेशकों के हास्यास्पद बयान भी ठहाके लगा रहे हैं, ‘नियमों का पालन हो तो आसान होगा महिलाओं का सफर’, ‘मानसिकता बदलें, नहीं तो घर में छेड़ी जाएंगी लड़कियां।’ कैसे बदलेगी मानसिकता? कौन बदलेगा? वह भी तब जब टी.वी. के पर्दे पर विज्ञापन (स्प्राईट कोल्ड ड्रिंक) में ‘कैसे ले लूं मैं इसकी....’, इच गार्ड में स्त्री गुप्तांग को खुजलाते और मैनफोर्स के विज्ञापन के जरिए कंडोम के साथ का सुख खुलेआम पूरा परिवार (दादा-दादी, नाना-नानी, बहू-बेटी, बेट, पोते-पोती, नतिनी-नाती) रजामंदी के साथ देखता है। यहीं नहीं लड़कियांे को मेडिकल स्टोर पर 72 आॅवर पिल्स या कंडोम खरीदते, दुकानदार रोक सकता हैं?
    सड़क पर आधे-अधूरे कपड़ों में बाइक पर पूरी बेशर्मी से लिपटी युवती को कौन रोक सकता हैं? चार शोहदों को सरेआम किशोरी से अश्लील हरकत करने से कौन रोकेगा? वह पुलिस जो खुद थानों के भीतर यही सब करने के प्रयास में बदनाम है? वह कायर पाखंडी अभिभावक जो खुद पड़ोस की महिला/युवती से रंगरेलियां मनाने के सपने देखते हैं या मनाते हुए पकड़े तक जाते हैं?
    या फिर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव का गए विधानसभा चुनावों के समय किया गया वायदा, ‘अगर उनकी पार्टी की सरकार बनती है तो बलात्कार पीडि़ता लड़की को सरकारी नौकरी दी जाएगी और बलात्कारी के विरूद्ध कड़ी कार्यवाहीं की जायेगी।’ कहां हुआ है इस वायदे पर अमल? बसपा सरकार के समय के सोनम, शीलू कांड के अलावा कन्नौज, एटा, बाराबंकी, मुरादाबाद, चिनहट (लखनऊ) कांड का सपा मुखिया ने अपने चुनाव प्रचार में बेहतर प्रयोग किया था। उस समय बड़ा हंगामा भी हुआ था। उन कांडों की सुध लेना तो मौजूदा सरकार के ‘पिताजी’ भूल गये लेकिन जो हर पल घटने वाले बलात्कारों की खबरें आ रही हैं उन पर तो चुनावी वायदे को पूरा किया जा सकता है।
    बलात्कार या छेड़छाड़ क्यों बढ़ रहे हैं? इस सवाल को लेकर महज बहस नहीं शोध हो सकता है। पुरूषों पर बढ़-चढ़कर आरोप लगाये जा सकते हैं, लेकिन मानसिक नंगई पर, सामाजिक नंगई पर कौन सा शोध होगा? जब कंप्यूटर लिंग निर्धारण से लेकर बच्चा पैदा करने की तारीख तय कर रहा है और टी.वी. के पर्दे पर बच्चा जनने की सारी प्रक्रिया ‘थ्री इडियट्स’ के जरिए दिखाई जा रही है, तब ‘सत्यमेव जयते’ में चीखना बेमानी हो जाता है। जब पूनम पांडे, रोजलीन, गहना, शर्लिन चोपड़ा जैसी सिनेमाई युवतियां अपने सारे कपड़े उतारकर नंगई का हल्ला बोल देती हैं, तब सारा समाज गोलबंद होकर चटखारे लगाता है? सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि पूरा सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक ढांचा जब बाजार में खड़ा है तो संस्कार के मूल्य कैसे बचाए जायेंगे? इसके जवाब में सरकार और सरपरस्तों को ही आगे बढ़कर पहल करनी होगी।
इश्कज़ादों और लापताओं के आंकड़े
वर्ष    गुमशुदगी दर्ज    मिले    शेष
2012 552    265    287
(1 जनवरी से 30 जून)
2011    957    837    120
2010    1012    948    64
2009    137    989    148
कुल        3658    3039    619

दादी अम्मा... दादी अम्मा मर जाओ...!

लखनऊ। दादी तुम कब मरोगी? दादी मर जाए तो....? जैसे अबोध और आतंकी सवालों के बीच पिछले पखवारे अंग्रेजी-हिन्दी के रोमांस से पैदा ‘वर्णशंकर पाठशालाओं’ मंे ‘ग्रांड पेरेंट्स डे’ कार्यक्रम सूबे के महानगरों से लेकर कस्बों तक में आयोजित किये गये। इनमें बच्चों ने अपने दादा-दादी, नानी-नाना के लिए ग्रीटिंग कार्ड, बेस्ट स्टोरी, गेम्स, फैशन शो आदि का उपहार देकर आनंद उठाया और स्कूलों ने मोटी कमाई की।
    पांच दशक पहले ‘धूल का फूल’ सिनेमा आया था, जिसमें रूठी हुई दादी अम्मा को मनाने के लिए उनके पोता-पोती ने गाना गया था, ‘दादी अम्मा.... दादी अम्मा.... मान जाओ...’। आज अधिकांश परिवार के बच्चे बगैर दादी-दादा के यहां तक बगैर मां-बाप के क्रेच, डे बोर्डिंग और हास्टलों में अपना बचपन गुजार रहे हैं। ऐसे में इन उधार की पाठशालाओं के धनबटोरू पाखण्ड से बच्चों को कौन से संस्कार मिलंेगे?